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भ्रमरगीत-सार/१६-कहौ कहाँ तें आए हौ

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९२

 


कहौ कहाँ तें आए हौ।

जानति हौं अनुमान मनो तुम जादवनाथ पठाए हौ॥
वैसोइ बरन, बसन पुनि वैसेइ, तन भूषन सजि ल्याए हौ।
सरबसु लै तब संग सिधारे अब कापर पहिराए हौ॥
सुनहु, मधुप! एकै मन सबको सो तो वहाँ लै छाए हौ।
मधुबन की मानिनी मनोहर तहँहिं जाहु जहँ भाए हौ॥
अब यह कौन सयानप? ब्रज पर का कारन उठि धाए हौ।
सूर जहाँ लौं ल्यामगात हैं जानि भले करि पाए हौ॥१६॥