भ्रमरगीत-सार/१७१-ऊधो! इतनी कहियो जाय

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ऊधो! इतनी कहियो जाय।

अति कृसगात भई हैं तुम बिनु बहुत दुखारी गाय॥

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जल समूह बरसत अँखियन तें, हूंकत[१] लीने नाँव।
जहाँ जहाँ गोदोहन करते ढूँढ़त सोइ सोई ठाँव॥
परति पछार खाय तेहि तेहि थल अति व्याकुल ह्वै दीन।
मानहुँ सूर काढ़ि डारे हैं बारि मध्य तें मीन॥१७१॥

  1. हूँकत=हुँकरती हैं, हुँकार मारती हैं।