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दरस-हीन, दुखित दीन, छन छन विपदा सही॥ रजनी अति प्रेमपीर, गृह बन मन धरै न धीर। बासर मग जोवत, उर सरिता बही नयननीर॥
आवन की अवधि-आस सोई गनि घटत स्वास। इतो बिरह बिरहिनि क्यों सहि सकै कह सूरदास?॥१८३॥