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भ्रमरगीत-सार/१८३-ऊधो बहुतै दिन गए चरनकमल-बिमुख ही

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५३ से – १५४ तक

 

ऊधो! बहुतै दिन गए चरनकमल-बिमुख ही।

दरस-हीन, दुखित दीन, छन छन विपदा सही॥
रजनी अति प्रेमपीर, गृह बन मन धरै न धीर।
बासर मग जोवत, उर सरिता बही नयननीर॥

आवन की अवधि-आस सोई गनि घटत स्वास।
इतो बिरह बिरहिनि क्यों सहि सकै कह सूरदास?॥१८३॥