भ्रमरगीत-सार/१८५-ऊधो इन नयनन नेम लियो

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राग मारू
ऊधो! इन नयनन नेम लियो।

नँदनंदन सों पतिव्रत बाँध्यो, दरसत नाहि बियो[१]
इंदु चकोर, मेघ प्रति चातक जैसे धरन दियो।
तैसे ये लोचन गोपालै इकटक प्रेम पियो॥
ज्ञानकुसुम लै आए ऊधो! चपल न उचित कियो।
हरिमुख-कमल अमियरस सूर चाहत वहै लियो॥१८५॥

  1. बियो=दूसरा।