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सुनि ऊधो! हम समुझत नाहीं फिरि पूँछति हैं तातें॥ को नृप भयो कंस किन मार्यो को वसुद्यौ-सुत आहि? यहाँ हमारे परम मनोहर जीजतु हैं मुख चाहि[१]॥
दिनप्रति जात सहज गोचारन गोप सखा लै संग। बासरगत रजनीमुख[२] आवत करत नयन-गति पंग[३]॥ को ब्यापक पूरन अबिनासी, को बिधि-बेद-अपार? सूर बृथा बकवाद करत हौ या ब्रज नंदकुमार॥१८॥