भ्रमरगीत-सार/१८-हमसों कहत कौन की बातें

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग धनाश्री
हमसों कहत कौन की बातें?

सुनि ऊधो! हम समुझत नाहीं फिरि पूँछति हैं तातें॥
को नृप भयो कंस किन मार्‌यो को वसुद्यौ-सुत आहि?
यहाँ हमारे परम मनोहर जीजतु हैं मुख चाहि[१]

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दिनप्रति जात सहज गोचारन गोप सखा लै संग।
बासरगत रजनीमुख[२] आवत करत नयन-गति पंग[३]
को ब्यापक पूरन अबिनासी, को बिधि-बेद-अपार?
सूर बृथा बकवाद करत हौ या ब्रज नंदकुमार॥१८॥

  1. चाहि=देखकर।
  2. रजनीमुख=संध्या।
  3. पंग=स्तब्ध।