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भ्रमरगीत-सार/२१६-कहि ऊधो हरि गए तजि मथुरा कौन बड़ाई पाई
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भ्रमरगीत-सार
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२१५-ऊधो वै सुख अबै कहाँ
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल
२१७-ऊधो जाय बहुरि सुनि आवहु कहा कह्यो है नंदकुमार
→
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६३
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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल
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