भ्रमरगीत-सार/२२३-ऊधो काल-चाल चौरासी

विकिस्रोत से

[ १६५ ]

ऊधो! काल-चाल चौरासी।

मन हरि मदनगोपाल हमारो बोलत बोल उदासी॥
एते पै हम जोग करहिं क्यों लै अबिगत अबिनासी।
गुप्त गोपाल करी बनलीला हम लूटी सुखरासी॥
लोचन उमगि चलत हरि के हित बिन देखे बरिसा सी।
रसना सूर स्याम के रस बिनु चातकहू तें प्यासी॥२२३॥