भ्रमरगीत-सार/२२२-ऊधो कहु मधुबन की रीति

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राग मारू
ऊधो! कहु मधुबन की रीति।

राजा ह्वै ब्रजनाथ तिहारे कहा चलावत नीति?
निसि-लौं करत दाह दिनकर ज्यों हुतो सदा ससि सीति।
पुरवा पवन कह्यो नहिं मानत गए सहज बपु जीति॥
कुब्जा-काज कंस को मार्‌यो, भई निरंतर प्रीति।
सूर बिरह ब्रज भलो न लागत जहाँ ब्याह तहँ गीति॥२२२॥