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भ्रमरगीत-सार/२२५-ऊधो कौन कुदिन छाँड़्यो हो गोकुल

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६६

 

राग सारंग
ऊधो! कौन कुदिन छाँड़्यो हो गोकुल।

बहुरि न आए फिरि या ब्रज में, बिछुर्‌यो तबहिं मिल्यो अब सो कुल॥
गरग-बचन समुझे अब मधुबन-कथा-प्रसंग सुन्यो हो जो कुल।
सूर भये अब त्रिभुवन के पति नातो ज्ञाति लहे अब निज कुल॥२२५॥