भ्रमरगीत-सार/२५०-को गोपाल कहाँ को बासी, कासों है पहिंचान
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राग धनाश्री
को गोपाल कहाँ को बासी, कासों है पहिंचान?
तुमसों सँदेसो कौन पठाए, कहत कौन सों आनि?
अपनी चाँड़ आनि उड़ि बैठ्यो भँवर भलो रस जानि।
कै वह बेलि बढ़ौ कै सूखौ, तिनको कह हितहानि॥
प्रथम बेनु बन हरत हरिन-मन राग-रागिनी ठानि।
जैसे बधिक बिसासि बिबस करि बधत विषम सर तानि॥
पय प्यावत पूतना हनी, छपि बालि हन्यो, बलि दानि।
सूपनखा, ताड़का निपाती सूर स्याम यह बानि॥२५०॥