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भ्रमरगीत-सार/२५२-मधुकर बादि बचन कत बोलत

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७६

 

राग आसावरी

मधुकर! बादि[] बचन कत बोलत?
तनक न तोहिं पत्याऊँ, कपटी अंतर-कपट न खोलत॥
तू अति चपल अलप[] को सगी बिकल चहूँ दिसि डोलत।
मानिक काँच, कपूर कटु खली, एक संग क्यों तोलत?
सूरदास यह रटत बियोगिनि दुसह दाह क्यों झोलत[]
अमृतरूप आनन्द अँगनिधि अनमिल अगम अमोलत॥२५२॥

  1. बादि=व्यर्थ।
  2. अलप=ओछा।
  3. झोलत=जलाता है।