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भ्रमरगीत-सार/२५६-मधुकर होहु यहाँ तें न्यारे

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७७

 

मधुकर! होहु यहाँ तें न्यारे।
तुम देखत तन अधिक तपत है अरु नयनन के तारे॥
अपनो जोग सैंति[] धरि राखौ, यहाँ लेत को, डारे?
तोरे हित अपने मुख करिहैं मीठे तें नहिं खारे॥
हमरे गिरिवरधर के नाम गुन बसे कान्ह उर बारे।
सूरदास हम सबै एकमत, तुम सब खोटे कारे॥२५६॥

  1. सैंति=सहेजकर।