भ्रमरगीत-सार/२५५-मधुकर कहाँ पढ़ी यह नीति

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मधुकर! कहाँ पढ़ी यह नीति?
लोकबेद स्रुति-ग्रंथ-रहित सब कथा कहत विपरीत॥
जन्मभूमि ब्रज, जननि जसोदा केहि अपराध तजी?
अति कुलीन गुन रूप अमित सब दासी जाय भजी[१]
जोगसमाधि गूढ़ स्रुति मुनिमग क्यों समुझिहै गँवारि।
जौ पै गुन-अतीत व्यापक तौ होहिं, कहा है गारि?
रहु रे मधुप! कपट स्वारथ हित तजि बहु बचन बिसेखि।
मन क्रम बचन बचत यहि नाते सूर स्याम तन देखि॥२५५॥

  1. भजी=अंगीकार को।