भ्रमरगीत-सार/२५७-मधुप बिराने लोग बटाऊ

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राग नट

मधुप! बिराने लोग बटाऊ[१]
दिन दस रहत काज अपने को तजि गए फिरे न काऊ[२]
प्रथम सिद्धि पठई हरि हमको, आयौ ज्ञान अगाऊ।
हमको जोग, भोग कुब्जा को, वाको यहै सुभाऊ॥

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कीजै कहा नंदनन्दन को जिनके है सतभाऊ।
सूरदास प्रभु तन मन अरप्यो प्रान रहैं कै जाऊ॥२५७॥

  1. बटाऊ=पथिक।)
  2. काऊ=कभी