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राग सोरठ। मधुकर! अब धौं कहा कर्यो चाहत? ये सब भईं चित्र की पुतरी सून्य सरीरहिं दाहत॥
हमसों तोसों बैर कहा, अलि, स्याम अजान ज्यों राहत। झारि झूरि मन तो हरि लै गए बहुरि पयारहि[१] गाहत[२]॥ अब तौ तोहिं मरुत को गहिबो कह स्रम करि तू लैहै? सूर कोट-मध्य तू ह्वै रह, अपनो कियो तू पैहै॥२६१॥