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भ्रमरगीत-सार/२७१-मधुकर पीत बदन किहि हेत

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८४

 

राग केदारो

मधुकर! पीत बदन[] किहि हेत?
जनु अन्तरमुख पांडु रोग भयो जुवतिन जो दुख देत॥
रसमय तन मन स्याम-धाम सो ज्यों उजरो संकेत[]
कमलनयन के बचन सुधा से करट[] घूँट भरि लेत॥
कुत्सित कटु बायस सायक सो अब बोलत रसखेत?
इन चतुरी तें लोग बापुरे कहत धर्म को सेत[]
माथे परौ जोगपथ तिनके वक्ता छपद समेत।
लोचन ललित कटाच्छ मोच्छ बिनु महि में जिऐं निचेत॥
मनसा बाचा और कर्मना स्यामसुन्दर सों हेत।
सूरदास मन की सब जानत हमरे मनहिं जितेत[]॥२७१॥

  1. पीत बदन=भौंरे के सिर पर पीला चिह्न होता है।
  2. संकेत=मिलने का स्थान।
  3. करट=कौआ।
  4. धर्म को सेत=धर्म को पार लगानेवाले, सेतु, पुल।
  5. जितेत=जितना।