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भ्रमरगीत-सार/२७२-मधुकर मधुमदमातो डोलत

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८४

 

मधुकर! मधुमदमातो डोलत।
जिय उपजत सोइ कहत न लाजत सूधे बोल न बोलत॥
बकत फिरत मदिरा के लीन्हें बारबार तन घूमत।
ब्रीड़ारहित[] सबन अवलोकत लता-कली-मुख चूमत॥
अपनेहूँ मन की सुधि नाहीं पर्‌यो आन ही कोठो[]
सावधान करि लेहि अपनपौ तब हम सों करु गोठो[]
मुख लागी है पराग पीक की, डारत नाहिंन धोई।
ताँसों कह कहिए सुनु, सूर, लाज डारि सब खोई॥२७२॥

  1. ब्रीड़ा=लज्जा।
  2. पर्‌यो......कोठो=मन और ही कोठे में है अर्थात् भ्रांत है।
  3. गोठो=गोष्ठी, सलाह।