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भ्रमरगीत-सार/२७८-देखियत कालिंदी अति कारी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८६ से – १८७ तक

 

राग सारंग

देखियत कालिंदी अति कारी।
कहियो, पथिक! जाय हरि सों ज्यों भई बिरह-जुर[]-जारी॥
मनो पलिका[] पै परी धरनि धँसि तरँग तलफ तनु भारी[]

तटबारू उपचार-चूर[] मनो, स्वेद-प्रवाह पनारी[]
बिगलित कच कुस कास[] पुलिन मनो, पंक जु कज्जल सारी।
भ्रमर मनो मति भ्रमत चहूं दिसि, फिरति है अंग दुखारी॥
निसिदिन चकई-व्याज बकत मुख, किन मानहुँ अनुहारी।
सूरदास प्रभु जो जमुना-गति सो गति भई हमारी॥२७८॥

  1. जुर=ज्वर, ताप।
  2. पलिका=पलंग।
  3. तरँग......भारी=तरंग उठना मानों शरीर का तड़फड़ाना है।
  4. उपचार-चूर=औषध का चूर्ण।
  5. पनारी=धारा, बहाव।
  6. (तट के) कुस कास=मानों बिखरे हुए केश हैं।