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भ्रमरगीत-सार/२७९-सुनियत मुरली देखि लजात

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८७

 

सुनियत मुरली देखि लजात।
दूरहि तें सिंहासन बैठे, सीस नाय मुसकात॥
सुरभी लिखी चित्र भीतिन पर तिनहिं देखि सकुचात।
मोरपंख को बिजन[] बिलोकत बहरावत कहि बात॥
हमरी चरचा जो कोउ चालत, चालत ही चपि[] जात।
सूरदास ब्रज भले बिसार्‌यो, दूध दही क्यों खात?॥२७९॥

  1. बिजन=बीजन, पंखा।
  2. चपि जात=दब जाते हैं।