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भ्रमरगीत-सार/२७-हमरे कौन जोग ब्रत साधै

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९९

 

राग मलार
हमरे कौन जोग ब्रत साधै?

मृगत्वच, भस्म, अधारि[], जटा को को इतनो अवराधै?
जाकि कहूं थाह नहिं पैए अगम, अपार, अगाधै।
गिरिधर लाल छबीले मुख पर इते बाँध[] को बाँधै?
आसन, पवन विभूति मृगछाला ध्याननि को अवराधै?
सूरदास मानिक परिहरि कै राख गाँठि को बाँधै? ॥२७॥

  1. अधारी=साधुओं की टेकने की लकड़ी।
  2. बाँध=आडंबर।