भ्रमरगीत-सार/२६-ए अलि! कहा जोग में नीको

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग बिलावल
ए अलि! कहा जोग में नीको?

तजि रसरीति नंदनंदन की सिखवत निर्गुन फीको॥
देखत सुनत नाहिं कछु स्रवननि, ज्योति ज्योति करि ध्यावत।
सुंदरस्याम दयालु कृपानिधि कैसे हौ बिसरावत?
सुनि रसाल मुरली-सुर की धुनि सोई कौतुक-रस भूलैं।
अपनी भुजा ग्रीव पर मेलैं[१] गोपिन के सुख फूलैं॥
लोककानि कुल को भ्रम प्रभु मिलि मिलि कै घर बन खेली[२]
अब तुम सूर खवावन आए जोग जहर की बेली॥२६॥

  1. मेलैं=डालते थे।
  2. खेली=खेल डाला, कुछ न समझा।