भ्रमरगीत-सार/२८४-हमारे माई! मोरउ बैर परे
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हमारे माई! मोरउ बैर परे।
घन गरजे बरजे नहिं मानत त्यों त्यों रटत खरे।
करि एक ठौर बीनि इनके पंख मोहन सीस धरे।
याही तें हम ही को मारत, हरि ही ढीठ करे॥
कह जानिए कौन गुन, सखि री! हम सों रहत अरे।
सूरदास परदेस बसत हरि, ये बन तें न टरे॥२८४॥