भ्रमरगीत-सार/२८८-तुम्हरे बिरह ब्रजनाथ अहो प्रिय! नयनन नदी बढ़ी
दिखावट
राग नट
नाहिंन और उपाय रमापति बिन दरसन छन जीजै।
अस्रु-सलिल बूड़त सब गोकुल सूर सुकर गहि लीजै॥२८८॥
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९० से – १९१ तक
राग नट
नाहिंन और उपाय रमापति बिन दरसन छन जीजै।
अस्रु-सलिल बूड़त सब गोकुल सूर सुकर गहि लीजै॥२८८॥