भ्रमरगीत-सार/२८९-हमको सपनेहू में सोच

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हमको सपनेहू में सोच।
जा दिन तें बिछुरे नँदनँदन ता दिन तें यह पोच॥
मनो गोपाल आए मेरे घर, हँसि करि भुजा गही।
कहा करौं बैरिनि भइ निंदिया, निमिष न और रही॥
ज्यों चकई प्रतिबिंब देखिकै आनंदी[१] पिय जानि।
सूर, पवन मिस निठुर बिधाता-चपल कर्‌यो जल आनि॥२८९॥

  1. आनंदी=आनंदित हुई।