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भ्रमरगीत-सार/२९४-जो पै कोउ मधुबन लै जाय

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९३

 

राग केदारो

जो पै कोउ मधुबन लै जाय।
पतिया लिखी स्यामसुंदर को, कर-कंकन देउँ ताय[]
अब वह प्रीति कहाँ गई माधव! मिलते बेनु बजाय।
नयन-नीर सारँग-रिपु[] भीजै दुख सो रैनि बिहाय॥
सून्य भवन मोहिं खरो डरावै, यह ऋतु मन न सुहाय।
सूरदास यह समौ गए तें पुनि कह लैहैं आय?॥२९४॥

  1. ताय=ताहि, उसको।
  2. सारँग-रिपु=कमल का शत्रु चंद्रमुख।