जो पै कोउ मधुबन लै जाय।
पतिया लिखी स्यामसुंदर को, कर-कंकन देउँ ताय[१]॥
अब वह प्रीति कहाँ गई माधव! मिलते बेनु बजाय।
नयन-नीर सारँग-रिपु[२] भीजै दुख सो रैनि बिहाय॥
सून्य भवन मोहिं खरो डरावै, यह ऋतु मन न सुहाय।
सूरदास यह समौ गए तें पुनि कह लैहैं आय?॥२९४॥