भ्रमरगीत-सार/२९९-देखौ माई नयनन्ह सों घन हारे

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राग मलार
देखौ माई! नयनन्ह सों घन हारे।
बिन ही ऋतु बरसत निसिबासर सदा सजल दोउ तारे॥

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ऊरध स्वास समीर तेज अति दुख अनेक द्रुम डारे।
बदन सदन करि बसे बचन-खग[१] ऋतु पावस के मारे॥
ढरि ढरि बूँद परत कंचुकि पर मिलि अंजन सों कारे।
मानहुं सिव की पर्नकुटी बिच धारा स्याम निनारे[२]
सुमिरि सुमिरी गरजत निसिबासर अस्रु-सलिल के धारे।
बूड़त ब्रजहि सूर को राखै बिनु गिरिवरधर प्यारे॥२९९॥

  1. बसे बचन-खग=वचन रूपी पक्षियों ने मुँह में ही बसेरा ले लिया है, बाहर नहीं निकलते।
  2. निनारे=न्यारे, अलग अलग।