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भ्रमरगीत-सार/२ कहियो नन्द कठोर भए

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८६ से – ८७ तक

 

राग सोरठ
कहियो नन्द कठोर भए।

हम दोउ बीरै[] डारि पर-घरै मानो थाती सौंपि गए॥
तनक तनक तैं पालि बड़े किए बहुतै सुख दिखराए।

गोचारन को चलत हमारे पाछे कोसक धाए॥
ये बसुदेव देवकी हमसों कहत आपने जाए।
बहुरि बिधाता जसुमतिजू के हमहिं न गोद खिलाए॥
कौन काज यह राज, नगर को सब सुख सों सुख पाए?
सूरदास ब्रज समाधान[] कर आजु काल्हि हम आए॥२॥

  1. बीर=भाई।
  2. समाधान=प्रबोध, तसल्ली।