भ्रमरगीत-सार/३ तबहिं उपंगसुत आय गए
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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८७
सखा सखा कछु अंतर नाहीं भरि भरि अंक लए॥
अति सुंदर तन स्याम सरीखो देखत हरि पछिताने।
ऐसे को वैसी बुधि होती ब्रज पठवैं तब आने॥
या आगे रस-काब्य प्रकासे जोग-बचन प्रगटावै।
सूर ज्ञान दृढ़ याके हिरदय युबतिन जोग सिखावै॥३॥