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सखा सखा कछु अंतर नाहीं भरि भरि अंक लए॥ अति सुंदर तन स्याम सरीखो देखत हरि पछिताने। ऐसे को वैसी बुधि होती ब्रज पठवैं तब आने॥ या आगे रस-काब्य प्रकासे जोग-बचन प्रगटावै। सूर ज्ञान दृढ़ याके हिरदय युबतिन जोग सिखावै॥३॥