भ्रमरगीत-सार/३०१-मधुकर जोग न होत सँदेसन
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राग सारंग
मधुकर! जोग न होत सँदेसन।
नाहिंन कोउ ब्रज में या सुनिहै कोटि जतन उपदेसन।
रबि के उदय मिलन चकई को संध्या-समय अँदेस[१] न।
क्यों बन बसैं बापुरे चातक, बधिकन्ह काज बधे सन॥
नगर एक नायक बिनु सूनो, नाहिंन काज सबै सन।
सूर सुभाय मिटत क्यों कारे जिहि कुल रीति डसै सन॥३०१॥
- ↑ रवि के...अँदेस न=संध्या समय जब वियोग होता है, तब इसमें संदेह नहीं रहता कि सूर्योदय होने पर फिर मिलन होगा।