भ्रमरगीत-सार/३०७-को कहै हरि सों बात हमारी

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राग धनाश्री

को कहै हरि सों बात हमारी?
हम तौ यह तब तें जिय जान्यौ जबै भए मधुकर अधिकारी॥
एक प्रकृति, एकै कैतव[१]-गति, तेहि गुन अस जिय भावै।
प्रगटत है नव कंज मनोहर, ब्रज किंसुक कारन कत आवै॥
कंजतीर चंपक-रस-चंचल[२], गति सब ही तें न्यारी।
ता अलि की संगति बसि मधुपुरि सूरदास प्रभु सुरति बिसारी॥३०७॥

  1. कैतव-गति=धोखे या छल की चाल!
  2. रस चंचल=कमल के पास रहकर भी चंपा के लिए चंचल होता है जो उसके काम का नहीं।