को कहै हरि सों बात हमारी?
हम तौ यह तब तें जिय जान्यौ जबै भए मधुकर अधिकारी॥
एक प्रकृति, एकै कैतव[१]-गति, तेहि गुन अस जिय भावै।
प्रगटत है नव कंज मनोहर, ब्रज किंसुक कारन कत आवै॥
कंजतीर चंपक-रस-चंचल[२], गति सब ही तें न्यारी।
ता अलि की संगति बसि मधुपुरि सूरदास प्रभु सुरति बिसारी॥३०७॥