भ्रमरगीत-सार/३०८-हमारे स्याम चलन चहत हैं दूरि

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हमारे स्याम चलन चहत हैं दूरि।
मधुबन बसत आस ही[१] सजनी! अब मरिहैं जो बिसूरि॥
कौने कही, कहाँ सुनि आई? केहि दिसि रथ की धूरि।
संगहि सबै चलौ माधव के नातरु मरिबो झूरि।
पच्छिम दिसि एक नगर द्वारका, सिन्धु रह्यो जल पूरि।
सूर स्याम क्यों जीवहिं बाला, जात सजीवन मूरि॥३०८॥

  1. ही=थी।