भ्रमरगीत-सार/३११-ऐसे माई पावस ऋतु प्रथम सुरति करि माधवजू आवै री

विकिस्रोत से

[ १९९ ]

राग मलार

ऐसे माई पावस ऋतु प्रथम सुरति करि माधवजू आवै री।
बरन बरन अनेक जलधर अति मनोहर बेष।
यहि समय यह गगन-सोभा सबन तें सुबिसेष॥
उड़त बक, सुक-बृन्द राजत, रटत चातक मोर।
बहुत भाँति चित हित-रुचि[१] बाढ़त दामिनी घनघोर[२]
धरनि-तनु तृनरोम हर्षित प्रिय समागम जानि।
और द्रुम बल्ली बियोगिनी मिलीं पति पहिचानि॥
हस, पिक, सुक, सारिका अलिपुंज नाना नाद।
मुदित मंगल मेघ बरसत, गत बिहंग-बिषाद॥
कुटज, कुन्द, कदम्ब, कोबिद[३], कर्निकार[४], सु कंजु।
केतकी, करबीर[५], चिलक[६] बसन्त-सम तरु मंजु॥

[ २०० ]

सघन तरु कलिका अलंकृत, सुकृत सुमन सुबास।
निरखि नयनन्ह होत मन माधव-मिलन की आस॥
मनुज मृग पसु पच्छि परिमित[७] औ अमित जे नाम।
सुख स्वदेस बिदेस प्रीतम सकल सुमिरत धाम॥
ह्वै है न चित्त उपाय सोच न कछू परत बिचार।
नाहिं ब्रजबासी बिसारत निकट नन्दकुमार॥
सुमिरि दसा दयाल सुंदर ललित गति मृदु हास।
चारु लोल कपोल कुण्डल डोल बलित-प्रकास॥
बेनु कर कल गीत गावत गोपसिसु बहु पास।
सुदिन कब यहि आँखि देखैं बहुरि बाल-बिलास॥
बार बारहिं सुधि रहति अति बिरह व्याकुल होति।
बात-बेग[८] सो लगै जैसो दीन दीपक ज्योति॥
सुनि बिलाप कृपाल सूर दास प्रान प्रतीति।
दरस दै दुख दूरि करिहैं, सहि न सकिहैं प्रीति॥३११॥

  1. हित-रुचि=प्रेम का अभिलाष।
  2. घोर=बादल की गरज।
  3. कोबिद=कोविदार, कचनार।
  4. कर्निकार=कनियारी का पेड़।
  5. करबीर=कनेर।
  6. चिलक=चमक।
  7. परिमित=पर्यत, तक।
  8. बात-बेग=हवा का झोंका।