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भ्रमरगीत-सार/३१२-चलहु धौं लै आवहिं गोपालै

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २००

 

चलहु धौं लै आवहिं गोपालै।
पायँ पकरि कै निहुरि बिनति कहि, गहि हलधर की बाहँ बिसालै॥
बारक बहुरि आनि कै देखहिं नन्द आपने बालै।
गैयन गनत गोप-गोपी-सह, सीखत बेनु रसालै॥
यद्यपि महाराज सुख-सम्पति कौन गनै मोतिन अरु लालै।
तदपि सूर आकरषि लियो मन उर घुँघचिन की मालै॥३१२॥