बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०३
राग मलार
कोकिल! हरि को बोल सुनाव। मधुबन तें उपटारि[१] स्याम कहँ या ब्रज लै कै आव॥ जाचक सरनहि[२] देत सयाने तन, मन, धन, सब साज। सुजस बिकात बचन के बदले, क्यों न बिसाहत आज॥ कीजै कछु उपकार परायो यहै सयानो काज। सूरदास प्रभु कहु या अवसर बन बन वसँत बिराज॥३१९॥