भ्रमरगीत-सार/३१९-कोकिल हरि को बोल सुनाव

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राग मलार

कोकिल! हरि को बोल सुनाव।
मधुबन तें उपटारि[१] स्याम कहँ या ब्रज लै कै आव॥
जाचक सरनहि[२] देत सयाने तन, मन, धन, सब साज।
सुजस बिकात बचन के बदले, क्यों न बिसाहत आज॥
कीजै कछु उपकार परायो यहै सयानो काज।
सूरदास प्रभु कहु या अवसर बन बन वसँत बिराज॥३१९॥

  1. उपटारि=उचाटकरि।
  2. सरनहि=शरण में आए याचक को।