भ्रमरगीत-सार/३६८-फूल बिनन नहिं जाउँ सखी री हरि बिन कैसे बीनौं फूल

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राग धनाश्री

फूल बिनन नहिं जाउँ सखी री! हरि बिन कैसे बीनौं फूल।
सुन री, सखी! मोहिं रामदोहाई फूल लगत तिरसूल॥
वे जो देखियत राते राते फूलन फूली डार।
हरि बिन फूल झार[१] से लागत झरि झरि परत अँगार॥
कैसे कै पनघट जाउँ सखी री! डोलौं सरिता-तीर।
भरि भरि जमुना उमड़ि चली है इन नैनन के नीर॥
इन नैनन के नीर सखी री! सेज भई घरनाउ[२]
चाहति हौं याही पै चढ़िकै स्याम-मिलन कों जाउँ॥
प्रान हमारे बिन हरि प्यारे रहे अधरन पर आय।
सूरदास के प्रभु सों सजनी कौन कहै समुझाय?॥३६८॥

  1. झार=अग्नि की ज्वाला।
  2. घरनाउ=घड़नई, बाँस में उलटे घड़े बाँधकर बनाई हुई नाव।