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भ्रमरगीत-सार/३६७-कर-कंकन तें भुज-टाँड़ भई

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१८ से – २१९ तक

 

राग विलावल
कर-कंकन तें भुज-टाँड़[] भई।
मधुवन चलत स्याम मनमोहन आवन-अवधि जो निकट दई॥

जोहति पंथ मनावति संकर बासर निसि मोहिं गनत गई।
पाती लिखत बिरह तन व्याकुल कागर[] ह्वै गयो नीरमई॥
ऊधो! मुख के बचनन कहियो[] हरि सों सूल नितप्रतिहि नई।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस को बियोगिनि बिकल भई॥३६७॥

  1. टाँड़=बाहु में पहनने का एक गहना (कृशता-वर्णन)।
  2. कागर=कागज।
  3. बचनन कहियो=इससे जबानी ही कहना।