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भ्रमरगीत-सार/३७०-ऊधो जबहिं जाव गोकुलमनि आगे पैयाँ लागन कहियो

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २२०

 

ऊधो! जबहिं जाव गोकुलमनि आगे पैयाँ लागन कहियो।
अब मोहिं बिपति परी दर्सन बिनु, सहि न सकत तन दारुन दहियो॥
सरदचंद मोहिं बैरि महा भयो, अनिल सहि न परै किहि बिधि रहियो?
सूर स्याम बिनु गृह बन सूनो, बिन मोहन काको मुख चहियो?॥३७०॥