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भ्रमरगीत-सार/३७१-मेरे मन इतनी सूल रही

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २२०

 

राग मलार

मेरे मन इतनी सूल रही।
वै बतियाँ छतियाँ लिखि राखीं जे नँदलाल कही॥
एक दिवस मेरे गृह आए मैं ही मथति दही।
देखि तिन्हैं मैं मान कियो सखि सो हरि गुसा गही॥
सोचति अति पछिताति राधिका मुर्छित धरनि ढही।
सूरदास प्रभु के बिछुरे तें बिथा न जाति सही॥३७१॥