भ्रमरगीत-सार/३८-बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे!

वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहिं ते कारे॥
तुम कारे, सुफलकसुत कारे, कारे मधुप भँवारे।
तिनके संग अधिक छबि उपजत कमलनैन मनिआरे[१]
मानहु नील माट[२] तें काढ़े लै जमुना ज्यों पखारे।
ता गुन स्याम भई कालिंदी सूर स्याम-गुन न्यारे॥३८॥

  1. मनिआर=सुहावन, रीनक।
  2. माट=मटका, मिट्टी का बरतन।