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भ्रमरगीत-सार/३९-अपने स्वारथ को सब कोऊ

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०३ से – १०४ तक

 

राग सारंग
अपने स्वारथ को सब कोऊ।

चुप करि रहौ, मधुप रस लंपट! तुम देखे अरु वोऊ॥
औरौ कछू सँदेस कहन को कहि पठयो किन सोऊ।

लीन्हे फिरत जोग जुबतिन को बड़े सयाने दोऊ॥
तब कत मोहन रास खिलाई जो पै ज्ञान हुतोऊ?
अब हमरे जिय बैठो यह पद 'होनी होउ सो होऊ'॥
मिटि गयो मान परेखो[] ऊधो हिरदय हतो सो होऊ।
सूरदास प्रभु गोकुलनायक चित-चिंता अब खोऊ॥३९॥

  1. मान परेखो=आसरा भरोसा।