भ्रमरगीत-सार/३७-हरि काहे के अंतर्यामी

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग सारंग
हरि काहे के अंतर्यामी?

जौ हरि मिलत नहीं यहि औसर, अवधि बतावत लामी[१]
अपनी चोप[२] जाय उठि बैठे और निरस बेकामी[३]?
सो कह पीर पराई जानै जो हरि गरुड़ागामी॥
आई उघरि प्रीति कलई सी जैसे खाटी आमी।
सूर इते पर अनख[४] मरति हैं, उधो पीवत मामी[५]॥३७॥

  1. लामी=लंबी।
  2. चोप=चाह, चाव।
  3. बेकामी=निष्काम।
  4. अनख=कुढ़न।
  5. मामी पीना=किसी बात को पी जाना, साफ इनकार करना।