भ्रमरगीत-सार/३83-माधव! सुनौ ब्रज को नेम
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राग धनाश्री
माधव! सुनौ ब्रज को नेम।
बूझि हम षट मास देख्यो गोपिकन को प्रेम॥
हृदय तें नहिं टरत उनके स्याम राम समेत।
अस्रु-सलिल-प्रवाह उर पर अरघ नयनन देत॥
चीर अंचल, कलस कुच, मनो पानि[१] पदुम चढ़ाय।
प्रगट लीला देखि, हरि के कर्म, उठतीं गाय॥
देह गेह-समेत अर्पन कमललोचन-ध्यान।
सूर उनके भजन आगे लगै फीको ज्ञान॥३८३॥
- ↑ पानि=हाथ, जिनकी उपमा कमल से दी जाती है।