भ्रमरगीत-सार/३८४-कहँ लौं कहिए ब्रज की बात
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कहँ लौं कहिए ब्रज की बात।
सुनहु स्याम! तुम बिनु उन लोगन जैसे दिवस बिहात॥
गोपी, ग्वाल, गाय, गोसुत सब मलिनबदन, कृसगात।
परम दीन जनु सिसिर-हेम-हत[१] अंबुजगन बिनु पात॥
जो कोउ आवत देखति हैं सब मिलि बूझति कुसलात।
चलन न देत प्रेम-आतुर उर, कर चरनन लपटात॥
पिक, चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहि न खात।
सूर स्याम संदेसन के डर पथिक न वा मग जात॥३८४॥
- ↑ हेम-हत=हिम या पाले के मारे हुए।