सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/४१-हम तौ कान्ह केलि की भूखी

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०४

 

राग धनाश्री
हम तौ कान्ह केलि की भूखी।

कैसे निरगुन सुनहिं तिहारो बिरहिनि बिरह-बिदूखी[]?
कहिए कहा यहौ नहिं जानत काहि जोग है जोग।
पा लागों तुमहीं सों, वा पुर बसत बावरे लोग॥
अंजन, अभरन, चीर, चारु बरु नेकु आप तन कीजै।
दंड, कमंडल, भस्म, अधारी जौ जुवतिन को दीजै॥
सूर देखि दृढ़ता गोपिन की ऊधो यह ब्रत पायो।
कहै 'कृपानिधि हो कृपाल हो! प्रेमै पढ़न पठायो'॥४१॥

  1. बिदूखी=दुखी।