भ्रमरगीत-सार/४१-हम तौ कान्ह केलि की भूखी

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग धनाश्री
हम तौ कान्ह केलि की भूखी।

कैसे निरगुन सुनहिं तिहारो बिरहिनि बिरह-बिदूखी[१]?
कहिए कहा यहौ नहिं जानत काहि जोग है जोग।
पा लागों तुमहीं सों, वा पुर बसत बावरे लोग॥
अंजन, अभरन, चीर, चारु बरु नेकु आप तन कीजै।
दंड, कमंडल, भस्म, अधारी जौ जुवतिन को दीजै॥
सूर देखि दृढ़ता गोपिन की ऊधो यह ब्रत पायो।
कहै 'कृपानिधि हो कृपाल हो! प्रेमै पढ़न पठायो'॥४१॥

  1. बिदूखी=दुखी।