भ्रमरगीत-सार/४०-तुम जो कहत सँदेसो आनि
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कहा करौं वा नँदनंदन सों होत नहीं हितहानि॥
जोग-जुगुति किहि काज हमारे जदपि महा सुखखानि?
सने सनेह स्यामसुन्दर के हिलि मिलि कै मन मानि॥
सोहत लोह परसि पारस ज्यों सुबरन बारह बानि[१]।
पुनि वह चोप कहाँ चुम्बक ज्यों लटपटाय लपटानि॥
रूपरहित नीरासा निरगुन निगमहु परत न जानि।
सूरदास कौन बिधि तासों अब कीजै पहिचानि? ॥४०॥
- ↑ बारह बानि=द्वादश वर्ण अर्थात् सूर्य की तरह चमकनेवाला, खरा।