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भ्रमरगीत-सार/४२-अँखिया हरि-दरसन की भूखी

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०५

 

अँखिया हरि-दरसन की भूखी।

कैसे रहैं रूपरसराची ये बतियाँ सुनि रूखी॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब एती नहिं झूखी[]
अब इन जोग-सँदेसन ऊधो अति अकुलानी दूखी॥
बारक[] वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी[]
सूर सिकत हठि नाव चलाओ ये सरिता हैं सूखी[]॥४२॥

  1. झूखी=सन्तप्त हुई।
  2. बारक=एक बार।
  3. पतूखी=पत्ते का दोना।
  4. सूर...सूखी=व्यर्थ बालू में नाव चलाते हो, ये सूखी नदियाँ हैं।