भ्रमरगीत-सार/४८-फिरि फिरि कहा सिखावत बात
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फिरि फिरि कहा सिखावत बात?
प्रातकाल उठि देखत, ऊधो, घर घर माखन खात॥
जाकी बात कहत हौ हमसों सो है हमसों दूरि।
ह्याँ है निकट जसोदानँदन प्रान-सजीवनमूरि॥
बालक संग लये दधि चोरत खात खवावत ड़ोलत।
सूर सीस सुनि चौंकत नावहिं अब काहे न मुख बोलत?॥४८॥