भ्रमरगीत-सार/४७-लिखि आई ब्रजनाथ की छाप

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राग सोरठ
लिखि आई ब्रजनाथ की छाप[१]

बाँधे फिरत सीस पर ऊधो देखत आवै ताप॥
नूतन रीति नंदनंदन की घरघर दीजत थाप।
हरि आगे कुब्जा अधिकारी, तातें है यह दाप॥
आए कहन जोग अवराधो अबिगत-कथा की जाप।
सूर सँदेसो सुनि नहिं लागै कहौ कौन को पाप? ॥४७॥

  1. छाप=चिह्न, मुहर।