भ्रमरगीत-सार/५०-हमको हरि की कथा सुनाव
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हमको हरि की कथा सुनाव।
अपनी ज्ञानकथा हो, ऊधो! मथुरा ही लै गाव॥
नागरि नारि भले बूझैंगी अपने वचन सुभाव।
पा लागों, इन बातनि, रे अलि! उनहीं जाय रिझाव॥
सुनि, प्रियसखा स्यामसन्दर के जो पै जिय सति भाव।
हरिमुख अति आरत इन नयननि बारक बहुरि दिखाव॥
जो कोउ कोटि जतन करै, मधुकर, बिरहिनि और सुहाव?
सूरदास मीन को जल बिनु नाहिंन और उपाव॥५०॥