लोचन-जल कागद-मसि मिलि कै ह्वै गइ स्याम स्याम की पाती[१]॥
गोकुल बसत संग गिरिधर के कबहुं बयारि लगी नहिं ताती।
तब की कथा कहा कहौं, ऊधो, जब हम बेनुनाद सुनि जाती॥
हरि के लाड़[२] गनति नहिं काहू निसिदिन सुदिन रासरसमाती।
प्राननाथ तुम कब धौं मिलौगे सूरदास प्रभु बालसँघाती॥५७॥